
भारत पुरातात्विक दृष्टि से आज भी बहुत
सम्पन्न देश हैं । जब भी हम या आप पुरातत्व के सम्बन्ध में बात करते हैं तो स्वत:
ही सभी का ध्यान भारत के इतिहास पर जाता हैं और उसमे भी मुख्य रूप से भारत के
मध्यकालीन समय का इतिहास हैं । पुरातव के क्षेत्र की जब भी हम और बात करते हैं तो
आज भी भारत के मध्य काल को एक विशेष नज़र से
महत्त्व देते हैं । पुरातात्विक दृष्टि से यदि देखे तो हम पाते हैं कि जब भी यदि
किसी ऐसे वस्तु की प्राप्ति होती हैं जो इतिहास को संशय को दूर करती हैं तब हमें
उस वक़्त ज्यादा दुःख होता हैं जब हमें यह पता चलता हैं कि आज भी हमरे पास ऐसे
उपकरण और यंत्र नहीं हैं जिनसे हम इनकी सही तिथि क्रम (DATING) आज भी समझ को पूर्ण
सहमति के साथ नहीं दे सकते हैं । जब कभी हम और आप यह बात करते कि हमारे समक्ष आज
भी भारत का अधुरा या आतार्किक इतिहास पेश किया गया हैं ,उस परिस्थिति में हम तब ये
भूल जाते हैं कि इतिहास साक्ष्य पर आधारित होता हैं न कि किसी मान्यता पर ; भारत
के लोग आज भी अंधविश्वास और अंध श्रद्दा में आज भी जीते हैं । किसी स्थल पर प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्य
उस स्थल पर हुए ऐतिहासिक घटनाओं की ओर पूरी तरह से इंगित नहीं करते ; जब
किसी का इतिहास मान्यता पर आधारित हो न की साक्ष्य पर तब वो इतिहास हमेशा संदेह के
दायरे में हमेशा रहता हैं “इसी संदेह को खंडित करता हैं पुरातात्विक अध्ययन एवं आज
उसके इसी गुण के कारण हम और आप उसके आधार पर आज अध्यनन करते हैं । ” अंत में केवल
मैं यही कहूँगी कि अन्वेषण के लिए आज भी और कल भी इन पुरातविक स्रोतों की जरुरत था
हैं और भविष्य में भी रहेगी । मगर कुछ परेशानियाँ इसके अन्वेषण कर्ताओं को होती
हैं जैसे :- क़ानूनी ,सामाजिक और धार्मिक आदि भारत कहीं न कहीं आस्था पर खड़ा हुआ
मुल्क हैं इसलिए यहाँ पर शौचालय से पहले शिवालय का महत्व आज भी ; इससे यह स्पष्ट होता हैं कि आज भी देश धर्म को आंगे/ऊपर रखता हैं और
विज्ञान व विकास को पीछे ।
एकता जैन ,
एम.फिल. बौद्ध अध्ययन विभाग ,
दिल्ली विश्वविद्यालय.दिल्ली-110007
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