Wednesday, 5 December 2018

List of Swadeshi Companies and Products





BE INDIAN BUY INDIAN!
 

Given below is a list of companies and products we use in our daily life. We should use the products/companies which are swadeshi(written in green below) instead of foreign companies(written in red below):



Cold drinks-
Foreign- Coca Cola(Coke, Fanta, Sprite, Thumbsup, Limca, Goldpat), Pepsi(Lehar, 7up, Mirinda, Slice)
Swadeshi- Rose Drink(Sherbat), Badam Drink, Milk, Lassi, Curd, yoghurt, Chaach, Juice, Lemonade(Nimbu Paani), Coconut Water(Naariyal Paani), Shakes, Jaljeera, Thandai, Roohafza, Rasna, Frooti, Godrej Jumpin, etc

Tea & coffee-
Foreign- Lipton(Tiger, Green Label, Yellow Label, Cheers), BrookBond(Red Label, Taj Mahal), Godfrey Philips, Polsan, Goodrick, Sunrise, Nestle, Nescafe
Swadeshi- Divya Peya(Patanjali), Tata, Brahmaputra, Aasam, Girnaar, Indian Cafe, M.R.

Child food & milk powder-
Foreign- Nestle(Lactogen, Cerelac, Nestam, L.P.F, Milkmaid, Eaveryday, Galtco), GlaksoSmithCline(Farex)
Swadeshi- Honey, Boiled rice, Fruit Juice. Amul, Sagar, Tapan, Milk Care, etc.

Ice-cream-Most ice-creams have animal intestinal extracts.
Foreign- Walls, Quality, Cadbury, Dolps, Baskin & Robins.
Swadeshi- Homemade icecream/coolfi, Amul, Vadilal, Milk food, etc.

Salt-
Foreign- Annapurna, Captain Cook(HUL- Hindustan Unilever), Kisan(Brookbond), Pilsbury.
Swadeshi- Ankur, Saindha namak(Patanjali), Low Sodium & Iron-45 Ankur, Tata, Surya, Taja, Tara.

Potato chips & snacks-
Foreign- Uncle, Pepsi(Ruffle, Hastes), FunMunch, etc
Swadeshi- Bikano Namkeen, Haldiram, Homemade chips, Bikaji, AOne, etc

Tomato ketchup & fruit jam-
Foreign-Nestle, BrookBond (Kisaan), Brown and Palson
Swadeshi- Patanjali(Fruit jam, Apple jam, Mix jam), Homemade sauce/ketchup, Indana, Priya, Rasna.

Biscuit & chocolates-
Most choclates have Arsenic(Poison).
Foreign- Cadbury(Bournvita, 5Star), Lipton, Horlicks, Nutrine, Eclairs.
Swadeshi- Patanjali(Amla Candy, Bel Candy, Aarogya biscuit), Parle, Indana, Amul, Ravalgaon, Bakemens, Creamica, Shagrila.

Water-
Foreign- Aquafina, Kinley, Beiley, Pure life, Ivian.
Swadeshi- Home-boiled pure water, Ganga, Himalaya, Rail neer, Bisleri.

Health tonics-
Foreign- Boost, Polson, Bournvita, Horlicks, Complan, Spurt, Proteinex.
Swadeshi- Patanjali(Badam Pak, Chyawanprash, Amrit Rasayan, Nutramul)

Ghee & edible oil-
Foreign- Nestle, ITC, Hindustan Uniliver(HUL)
Swadeshi- Param Ghee, Amul, Handmade cow ghee, Patanjali(Sarso ka tel).

Toothpaste/Powder- 
Foreign- Most toothpastes are made from Animal bone powder. Colgate, Hindustan Uniliver(HUL)(Closeup, Pepsodent, Cibaca), Aquafresh, Amway, Quantum, Oral-B, Forhans.
Swadeshi- Patanjali(Dant Kanti, Dant Manjan), Vico Bajradanti, MDH, Baidyanath, Gurukul Pharmacy, Choice, Neem, Anchor, Meswak, Babool, Promise.

Toothbrush-
Foreign- Colgate, Closeup, Pepsodent, Oral-B, Aquafresh, Cibaca
Swadeshi- Ajay, Promise, Ajanta, Royal, Classic, Dr. Strock, Monate.

Bathing Soap-
Foreign- Hindustan Unilever(HUL)(Lux, Liril, Lifebuoy, Denim, Dove, Revlon, Pears, Rexona, Bridge, Hamam, Okay), Ponds, Detol, Clearsil, Palmolive, Amway, Johnson Baby, Vivel(ITC).
Swadeshi- Patanjali(Kayakanti, Kayakanti Aloevera), Nirma, Medimix, Neem, Nima, Jasmine, Mysore Sandal, Kutir, Sahara, Himani Glyscerene, Godrej(Cinthol, Fairglo, Shikakayi, Ganga), Wipro, Santoor.

Shampoo-
Foreign- Colgate, Palmolive, HUL(Lux, Clinic, Sunsilk, Revlon, Lakme), Proctar & Gamble(Pantent, Medicare), Ponds, Old Spice, Shower to Shower, Head & Shoulders, Johnson Baby, Vivel.
Swadeshi- Patanjali(Kesh Kanti), Wipro, Park Avenue, Swatik, Ayur Herbal, Kesh Nikhar, Hair & Care, Arnica, Velvet, Dabur Vatika, Bajaj, Nyle, Lavender, Godrej.

Washing Soap, Powder, Neel-
Foreign- HUL(Surf, Rin, Sunlight, Wheel, Okay, Vim), Arial, Check, Henko, Quantum, Amway, Rivil, Woolwash, Robin Blue, Tinapal, Skylark
Swadeshi- Tata Shudh, Nima, Care, Sahara, Swastik, Vimal, Hipolin, Fena, Sasa, TSeries, Dr. Det, Ghadi, Genteel, Ujala, Ranipal, Nirma, Chamko, Dip

CreShaving am-
Foreign- Old Spice, Palmolive, Ponds, Gillete, Denim.
Swadeshi- Park Avenue, Premium, Emami, Balsara, Godrej, Nivea.

Shaving blade-
Foreign- Gillete, 70clock, Wilman, Wiltage.
Swadeshi- Topaz, Gallant, Supermax, Laser, Esquire, Silver Prince, Premium.

Cream, powder, cosmetic products-
Foreign- HUL(Fair & Lovely, Lakme, Liril, Denim, Revelon), Proctar & Gamble(Clearsil, Cleartone), Ponds, Old Spice, Detol, Charli, Johnson Baby.
Swadeshi- Patanjali(KayaKanti, KayaKanti Aloevera, Kantilep) Neem, Borosil, Ayur Emami, Vico, Boroplus, Boroline, Himani Gold, Nyle, Lavender, Hair & Care, Heavens, Cinthol, Glory, Velvet(Baby).

Readymade garments-
Foreign- Rangler, Nike, Duke, Adidas, Newport, Puma, Reebok
Swadeshi- Cambridge, Park Avenue, Bombay Dyeing, Ruf & Tuf, Trigger Jeans.

Watches/Clocks-
Foreign- Baume&Mercier, Bvigari, Chopard, Dior, FranckMuller, Gizard-Perregaux, Hublot, JaquetDroz, LeonHatot, Liadro, Longines, MontBlanc, Mocado, Piaget, Rado, Raymond Weil, Swarovski, TagHeuer, Ulysse Nardin, Vertu, Swatch, Rolex, Swissco, Seeko
Swadeshi- Titan, HMT, Maxima, Prestige, Ajanta.

Stationery-
Foreign- Parker, Nickleson, Rotomac, Swissair, Add Gel, Ryder, Mitsubishi, Flair, Uniball, Pilot, Rolgold.
Swadeshi- Camel, Kingson, Sharp, Cello, Natraj, Ambassador, Linc, Montex, Steek, Sangita, Luxor.

Electronics-
Foreign- Samsung, LG, Sony, Hitachi, Haier.
Swadeshi- Voltas, Videocon, BPL, Onida, Orpat, Oscar, Salora, ET&T, T-series, Nelco, Weston, Uptron, Keltron, Cosmic, TVS, Godrej, Brown, Bajaj, Usha, Polar, Anchor, Surya, Oriont, Cinni, Tullu, Crompton, Loyds, Blue Star, Voltas, Cool home, Khaitan, Everready, Geep, Novino, Nirlep, Elite, Jayco, Titan, Ajanta, HMT, Maxima, Alwin watch, Ghari, Bengal, Maysoor, Hawkins, Prestige pressure cooker and products of small scale and cottage industries.

Computers-
Foreign- HP, Compaq, Dell, Microsoft.
Swadeshi- Amar PC, Chirag, HCL.



DATE'S FORM LISTING :- 21/09/2009
पंकज वेला दशकंठी
एम.. गांधी एवं शांति अध्ययन
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा



रामचरितमानस की मनोवैज्ञानिकता




रामचरितमानस की मनोवैज्ञानिकता

हिन्दी साहित्य का सर्वमान्य एवं सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य रामचरितमानसमानव संसार के साहित्य के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों एवं महाकाव्यों में से एक है। विश्व के सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य ग्रंथ के  साथ रामचरित मानस को ही प्रतिष्ठित करना समीचीन है | वह वेद, उपनिषद, पुराण, बाईबल, इत्यादि के मध्य भी पूरे गौरव के साथ खड़ा किया जा सकता है। इसीलिए यहां पर तुलसीदास रचित महाकाव्य रामचरित मानस प्रशंसा में प्रसादजी के शब्दों में इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि -

राम छोड़कर और की जिसने कभी न आस की,
रामचरितमानस-कमल जय हो तुलसीदास की।

अर्थात यह एक विराट मानवतावादी महाकाव्य है, जिसका अध्ययन अब हम एक मनोवैज्ञानिक ढ़ंग से करना चाहेंगे,जो इस प्रकार है जिसके अन्तर्गत श्री महाकवि तुलसीदासजी ने श्रीराम के व्यक्तित्व को इतना लोकव्यापी और मंगलमय रूप दिया है कि उसके स्मरण से हृदय में पवित्र और उदात्त भावनाएं जाग उठती हैं। परिवार और समाज की मर्यादा स्थिर रखते हुए उनका चरित्र महान है कि उन्हें मर्यादा पुरूषोतम के रूप में स्मरण किया जाता ह। वह पुरूषोत्तम होने के साथ-साथ दिव्य गुणों से विभूषित भी हैं। वह ब्रह्म रूप ही है, वह साधुओं के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए ही पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यदि कहना चाहे तो भी राम के चरित्र में इतने अधिक गुणों का एक साथ समावेश होने के कारण जनता उन्हें अपना आराध्य मानती है, इसीलिए महाकवि तुलसीदासजी ने अपने ग्रंथ रामचरितमानस में राम का पावन चरित्र अपनी कुशल लेखनी से लिखकर देश के धर्म, दर्शन और समाज को इतनी अधिक प्रेरणा दी है कि शताब्दियों के बीत जाने पर भी मानस मानव मूल्यों की अक्षुण्ण निधि के रूप में मान्य है। अत: जीवन की समस्यामूलक वृत्तियों के समाधान और उसके व्यावहारिक प्रयोगों की स्वभाविकता के कारण तो आज यह विश्व साहित्य का महान ग्रंथ घोषित हुआ है, और इस का अनुवाद भी आज संसार की प्राय: समस्त प्रमुख भाषाओं में होकर घर-घर में बस गया है।
एक जगह डॉ. रामकुमार वर्मा संत तुलसीदास ग्रंथ में कहते हैं कि रूस में मैंने प्रसिध्द समीक्षक तिखानोव से प्रश्न किया था कि सियाराम मय सब जग जानीके आस्तिक कवि तुलसीदास का रामचरितमानस ग्रंथ आपके देश में इतना लोकप्रिय क्यों है? तब उन्होंने उत्तर दिया था कि आप भले ही राम को अपना ईश्वर माने, लेकिन हमारे समक्ष तो राम के चरित्र की यह विशेषता है कि उससे हमारे वस्तुवादी जीवन की प्रत्येक समस्या का समाधान मिल जाता है। इतना बड़ा चरित्र समस्त विश्व में मिलना असंभव है। ऐसा संत तुलसीदासजी का रामचरित मानस है।

मनोवैज्ञानिक ढ़ंग से अध्ययन किया जाये तो रामचरित मानस बड़े भाग मानुस तन पावा के आधार पर अधिष्ठित है, मानव के रूप में ईश्वर का अवतार प्रस्तुत करने के कारण मानवता की सर्वोच्चता का एक उदगार है। वह कहीं भी संकीर्णतावादी स्थापनाओं से बध्द नहीं है। वह व्यक्ति से समाज तक प्रसरित समग्र जीवन में उदात्त आदर्शों की प्रतिष्ठा भी करता है। अत: तुलसीदास रचित रामचरित मानस को मनोबैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाये तो कुछ विशेष उल्लेखनीय बातें हमें निम्मलिखित रूप में देखने को मिलती हैं ।

तुलसीदास एवं समय संवेदन में मनोवैज्ञानिकता :
तुलसीदासजी ने अपने समय की धार्मिक स्थिति की जो आलोचना की है उसमें एक तो वे सामाजिक अनुशासन को लेकर चिंतित दिखलाई देते हैं, दूसरे उस समय प्रचलित विभत्स साधनाओं से वे खिन्न रहे हैं। वैसे धर्म की अनेक भूमिकाएं होतीं हैं, जिनमें से एक सामाजिक अनुशासन की स्थापना है।

रामचरितमानस में उन्होंने इस प्रकार की धर्म साधनाओं का उल्लेख तामस धर्मके रूप में करते हुए उन्हें जन-जीवन के लिए अमंगलकारी बताया है।
तामस धर्म करहिं नर जप तप व्रत मख दान,
देव न बरषहिं धरती बए न जामहि धान॥

इस प्रकार के तामस धर्म को अस्वीकार करते हुए वहां भी उन्होंने भक्ति का विकल्प प्रस्तुत किया हैं।
अपने समय में तुलसीदासजी ने मर्यादाहीनता देखी। उसमें धार्मिक स्खलन के साथ ही राजनीतिक अव्यवस्था की चेतना भी सम्मिलित थी। रामचरितमानस के कलियुग वर्णन में धार्मिक मर्यादाएं टूट जाने का वर्णन ही मुख्य रूप से हुआ है, मानस के कलियुग वर्णन में द्विजों की आलोचना के साथ शासकों पर किया किया गया प्रहार निश्चय ही अपने समय के नरेशों के प्रति उनके मनोभावों का द्योतक है। इसलिए उन्होंने लिखा है -

द्विजा भूति बेचक भूप प्रजासन।
अन्त: साक्ष्य के प्रकाश में इतना कहा जा सकता है कि इस असंतोष का कारण शासन द्वारा जनता की उपेक्षा रहा है। रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने बार-बार अकाल पड़ने का उल्लेख भी किया है जिसके कारण लोग भूखों मर रहे थे -

कलि बारहिं बार अकाल परै,
बिनु अन्न दु:खी सब लोग मरै।

इस प्रकार रामचरितमानस में लोगों की दु:खद स्थिति का वर्णन भी तुलसीदासजी का एक मनोवैज्ञानिक समय संवेदन पक्ष रहा है।

तुलसीदास एवं मानव अस्तित्व की यातना :
यहां पर तुलसीदासजी ने अस्तित्व की व्यर्थतता का अनुभव भक्ति रहित आचरण में ही नहीं, उस भाग दौड़ में भी किया है, जो सांसारिक लाभ लोभ के वशीभूत लोग करते हैं। वस्तुत:, ईश्वर विमुखता और लाभ लोभ के फेर में की जानेवाली दौड़ धूप तूलसीदास की दृष्टि में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ध्यान देने की बात तो यह है कि तुलसीदासजी ने जहां भक्ति रहित जीवन में अस्तित्व की व्यर्थता देखी है, वही भाग दौड़ भरे जीवन की उपलध्धि भी अनर्थकारी मानी हैं। यथा -
जानत अर्थ अनर्थ रूप-भव-कूप परत एहि लागै।

इस प्रकार इन्होंने इसके साथ सांसारिक सुखों की खोज में निरर्थक हो जाने वाले आयुष्य क्रम के प्रति भी ग्लानि व्यक्त की है।

तुलसीदास की आत्मदीप्ति :
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में स्पष्ट शब्दों में दास्य भाव की भक्ति प्रतिपादित की है -

सेवक सेव्य भाव, बिनु भव न तरिय उरगारि।

साथ-साथ रामचरित मानस में प्राकृतजन के गुणगान की भर्त्सना अन्य के बड़प्पन की अस्वीकृति ही हैं। यहीं यह कहना कि उन्होंने रामचरितमानसकी रचना स्वान्त: सुखायकी हैं, अर्थात तुलसीदासजी के व्यक्तित्व की यह दीप्ति आज भी हमें विस्मित करती हैं।

मानस के जीवन मूल्यों का मनोवैज्ञानिक पक्ष :
इसके अन्तर्गत मनोवैज्ञानिकता के संदर्भ में रामराज्य को बताने का प्रयत्न किया गया है।
मनोवैज्ञानिक अध्ययन से रामराज्यमें स्पष्टत: तीन प्रकार हमें मिलते हैं
(1) मन: प्रसाद
(2) भौतिक समृध्दि और
(3) वर्णाश्रम व्यवस्था।

तुलसीदासजी की दृष्टि में शासन का आदर्श भौतिक समृध्दि नहीं है।मन: प्रसाद उसका महत्वपूर्ण अंग है। अत: रामराज्य में मनुष्य ही नहीं, पशु भी बैर भाव से मुक्त हैं। सहज शत्रु, हाथी और सिंह वहां एक साथ रहते हैं -
रहहिं एक संग गज पंचानन

भौतिक समृध्दि :
वस्तुत: मन संबंधी मूल्य बहुत कुछ भौतिक परिस्थितियों पर निर्भर रहते हैं। भौतिक परिस्थितियों से निरपेक्ष सुखी जन मन की कल्पना नहीं की जा सकती। दरिद्रता और अज्ञान की स्थिति में मन संयमन की बात सोचना भी निरर्थक हैं।
वर्णाश्रम व्यवस्था :
तुलसीदासजी ने समाज व्यवस्था-वर्णाश्रम के प्रश् के सदैव मनोवैज्ञानिक परिणामों के परिपार्श्व में उठाया हैं जिस कारण से कलियुग संतप्त हैं, और रामराज्य तापमुक्त है वह है कलियुग में वर्णाश्रम की अवमानना और रामराज्य में उसका परिपालन।

साथ-साथ तुलसीदासजी ने भक्ति और कर्म की बात को भी निर्देशित किया है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने भक्ति की महिमा का उद्धोष करने के साथ ही साथ शुभ कर्मो पर भी बल दिया है। उनकी मान्यता है कि संसार कर्म प्रधान है। यहां जो कर्म करता है, वैसा फल पाता है -

करम प्रधान बिरख करि रख्खा,
जो जस करिए सो-तस फल चाखा।8

आधुनिकता के संदर्भ में रामराज्य :
रामचरितमानस में उन्होंने अपने समय में शासक या शासन पर सीधे कोई प्रहार नहीं किया। लेकिन सामान्य रूप से उन्होंने शासकों को कोसा है, जिनके राज्य में प्रजा दु:खी रहती है -
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,
सो नृप अवसि नरक अधिकारी।

अर्थात यहां पर विशेष रूप से प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता सम्पन्न शासन की प्रशंसा की है। अत: राम ऐसे ही समर्थ और स्वच्छ शासक है और ऐसा राज्य सुराजका प्रतीक है।
रामचरितमानस में वर्णित रामराज्य के विभिन्न अंग समग्रत: मानवीय सुख की कल्पना के आयोजन में विनियुक्त हैं। रामराज्य का अर्थ उनमें से किसी एक अंग से व्यक्त नहीं हो सकता। किसी एक को रामराज्य के केन्द्र में मानकर शेष को परिधि का स्थान देना भी अनुचित होगा, क्योंकि ऐसा करने से उनकी पारस्परिकता को सही सही नहीं समझा जा सकता। इस प्रकार रामराज्य में जिस स्थिति का चित्र अंकित हुआ है वह कुल मिलाकर एक सुखी और सम्पन्न समाज की स्थिति है। लेकिन सुख सम्पन्नता का अहसास तब तक निरर्थक है, जब तक वह समष्टि के स्तर से आगे आकर व्यक्तिश: प्रसन्नता की प्रेरक नहीं बन जाती। इस प्रकार रामराज्य में लोक मंगल की स्थिति के बीच व्यक्ति के केवल कल्याण का विधान नहीं किया गया है। इतना ही नहीं, तुलसीदासजी ने रामराज्य में अल्पवय में मृत्यु के अभाव और शरीर के नीरोग रहने के साथ ही पशु पक्षियों के उन्मुक्त विचरण और निर्भीक भाव से चहकने में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की उत्साहपूर्ण और उमंगभरी अभिव्यक्त को भी एक वाणी दी गई है -
अभय चरहिं बन करहिं अनंदा।
सीतल सुरभि, पवन वट मंदा।
गुंजत अलि लै चलि-मकरंदा॥

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि रामराज्य एक ऐसी मानवीय स्थिति का द्योतक है जिसमें समष्टि और व्यष्टि दोनों सुखी है।

सादृश्य विधान एवं मनोवैज्ञानिकता :
तुलसीदास के सादृश्य विधान की विशेषता यह नहीं है कि वह घिसा-पिटा है, बल्कि यह है कि वह सहज है। वस्तुत: रामचरितमानस के अंत के निकट रामभक्ति के लिए उनकी याचना में प्रस्तुत किये गये सादृश्य में उनका लोकानुभव झलक रहा है -
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम,
तिमि रघुनाथ-निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम।

इस प्रकार प्रकृति वर्णन में भी वर्षा का वर्णन करते समय जब वे पहाड़ों पर बूंदे गिरने के दृश्य संतों द्वारा खल-वचनों को सेटे जाने की चर्चा सादृश्य के ही सहारे हमें मिलते हैं।
अत: तुलसीदासजी ने अपने काव्य की रचना केवल विदग्धजन के लिए नहीं की है। बिना पढ़े लिखे लोगों की अप्रशिक्षित काव्य रसिकता की तृप्ति की चिंता भी उन्हें ही थी जितनी विज्ञजन की।

                   इस प्रकार रामचरितमानस का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करने से यह हमें ज्ञात होता है कि रामचरित मानस केवल रामकाव्य नहीं है, वह एक शिव काव्य भी है, हनुमान काव्य भी है, व्यापक संस्कृति काव्य भी है। शिव विराट भारत की एकता का प्रतीक भी है। तुलसीदास के काव्य की समय सिध्द  लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि उसी काव्य रचना बहुत बार आयासित होने पर भी अन्त: स्फूर्ति की विरोधी नहीं, उसकी एक पूरक रही है। निस्संदेह तुलसीदास के काव्य के लोकप्रियता का श्रेय बहुत अंशों में उसकी अन्तर्वस्तु को है। अत: समग्रतया, तुलसीदास रचित रामचरित मानस एक सफल विश्वव्यापी महाकाव्य रहा है।

आलेख तिथि :- 19/09/2012 
पंकज वेला दशकंठी
एम.ए. गांधी एवं शांति अध्ययन
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
  

Questions Paper@ IGNOU BPSC-133 : तुलनात्मक सरकार और राजनीति

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