इन क्षेत्रों की संस्कृति में हिंदू धर्म के घुले-मिले अंश आज भी देखे जा सकते हैं. कंबोडिया का ही उदाहरण लें तो ब्राह्मण यहां नए राजा के राज्याभिषेक की परंपरा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. 12 साल पहले जब यहां नए राजा को सिंहासन सौंपा गया था तो भारतीय मीडिया में इस बात की काफी चर्चा हुई थी.

थाईलैंड बौद्ध बहुल देश है जहां राजा सहित तकरीबन पूरी आबादी रामाकीन के अठाहरवीं शताब्दी में अस्तित्व में आए संस्करण को राष्ट्रीय ग्रंथ की तरह मानती है  

इंडोनेशिया दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है लेकिन यहां छाया कठपुतली विधा में रामायण का मंचन काफी लोकप्रिय है. थाईलैंड बौद्ध बहुल देश है जहां राजा सहित तकरीबन पूरी आबादी रामाकीन के अठाहरवीं शताब्दी में अस्तित्व में आए संस्करण को राष्ट्रीय ग्रंथ की तरह मानती है.

थाईलैंड में एक समय रामायण के कई संस्करण प्रचलित थे लेकिन अब इनमें से गिने-चुने संस्करण ही बचे हैं. 18वीं शताब्दी के मध्य में सियाम (आज का थाईलैंड) के शहर अयुत्थया (अयोध्या का अपभ्रंश), जो तब देश की राजधानी था, को बर्मा की सेना ने तबाह कर दिया था. फिर बाद में जब चीनी सेना बर्मा में घुस आई तो उन्हें सियाम छोड़कर जाना पड़ा और यहां एक नए राजवंश व देश का उदय हुआ.

चक्री वंश के पहले राजा की उपाधि ही राम प्रथम थी. थाईलैंड में आज भी यही राजवंश है. जब बर्मी सेना यहां से चली गई तो देश में अपनी सांस्कृतिक जड़ों को खोजने की एक पूरी मुहिम चली और इसी दौरान रामायण को यहां दोबारा प्रतिष्ठा मिलनी शुरू हुई. रामायण का जो संस्करण आज यहां प्रचलित है वो राम प्रथम के संरक्षण में रामलीला के रूप में 1797 से 1807 के बीच विकसित हुआ था. राम प्रथम ने इसके कुछ अंशों को दोबारा लिखा भी है. इन्हीं वर्षों में थाईलैंड के इस सबसे प्रतिष्ठित बौद्ध मंदिर के चारों ओर बनी दीवार पर रामायण को चित्रित किया गया था.