ये लोग योजनाबद्ध
तरीके से सरदार पटेल को हिन्दुत्ववादी साबित करने की नीच हरकतें कर रहे हैं । नाथूराम गोडसे का आर.एस.एस. से सम्बन्ध नहीं
रहा है,
ऐसा घोषित करने की भीख आर.एस.एस. के नेताओं ने नाथूराम से
ही मा!गी थी । हकीकत यह है कि गांधी-हत्या
के पाच वर्ष पहले तक नाथूराम आर.एस.एस. का प्रचारक था । आर.एस.एस. पर से प्रतिबन्ध उठाया जा सके, इसके लिए सरदार पटेल ने नाथूराम को ऐसा घोषित करने के लिए कहा था, यह दावा गोपाल गोडसे करते हैं । इस
प्रकार सरदार पटेल हिन्दुत्ववादी थे, और आर.एस.एस. से मिले हुए थे, ऐसा गन्दा संकेत
ये दो लोग बेशर्मी से करते हैं । आरम्भ
में गुरु गोलवलकर की लिखी 'अवर नेशनहुड
डिफाइन्डल् पुस्तक का उल्लेख किया गया है
। इस पुस्तक का प्रकाशन 1939 में हुआ था । इस पुस्तक के कारण जब आर.एस.एस. के लिए
कठिनाइया! बढने लगी, तब तुरन्त उससे छुटकारा
पाने के लिए गुरु गोलवलकर ने इस पुस्तक के लेखक का नाम बदलकर बाबाराव सावरकर कर
दिया । दूसरे के नाम की पुस्तक अपने नाम
पर प्रकाशित कराने की बात हमने सुनी है ।
परन्तु इस आदमी ने तो अपनी चमडी बचाने के लिए अपनी ही पुस्तक दूसरे के नाम कर दी । ऐसे कायर और कपटी आदमी को क्या प्रामाणिक, बहादुर और देशभक्त कहा जा सकता है ?
गोपाल गोडसे ने जेल से छूटने के लिए भारत सरकार को एकगदो बार नहीं, 22 बार अर्जी दी थी और ऐसे लोग अपने को शूरवीर कहते हैं । 1नेलसन मण्डेला तो 32 वर्ष जेल में रहे
थे,
और एक बार भी उन्होंने जेल से छूटने के लिए अर्जी नहीं दी
थी ।1 भारत सरकार ने गोपाल गोडसे को सजा की मुद्दत पूरी होने से पहले रिहा नहीं किया, इसलिए गोपाल गोडसे कहते हैं कि सरकार ने उनके साथ अन्याय किया । यह धूर्त आदमी, उसके तुरन्त बाद कहता हैं कि सरदार पटेल होते, तो हमारे ।पर यह अन्याय नहीं हुआ
होता । एक निःशस्त्र इन्सान की प्रार्थना
के वक्त हत्या करने वाले, सरासर झूठ बोलने
वाले,
निर्दोष व्यक्ति को अपने साथ कीचड में सानने की कोशिश करने
वाले लोगों को क्या कभी भी प्रामाणिक, बहादुर और देशभक्त माना जा सकता है ?
भारतीय राजनीति
में हिन्दुत्ववादी तो मूर्ख-शिरोमणि थे ।
गांधीजी की हत्या करके उन्होंने अपने ही पा!व पर कुल्हाडी मारी थी । गांधीजी की हत्या के साथ ही साम्प्रदायिक
दंगे बन्द नहीं हुए होते, और उस स्थिति में
हिन्दुत्ववादियों को शक्ति बढाने का मौका मिला होता । देश का साम्प्रदायिक विभाजन और साम्प्रदायिक
ताकतों का ध्रुवीकरण हुआ होता तो शायद भारत में सेक्यूलर संविधान और सेक्यूलर
राज्य अस्तित्व में नहीं आया होता ।
गांधीजी ने तो अपने प्राणों की आहुति देकर भी देश की सेवा की,जबकि मूर्ख हिन्दुत्ववादियों ने महात्मा के प्राण लेकर अपने ही ध्येय को
नुकसान पहुचाया
।
यह है गांधीगहत्या की वस्तुस्थिति । जैसे कि प्रारम्भ में ही कहा है कि
नाथूराम गोडसे धर्म-जनूनी था, पागल नहीं । ठण्डे कलेजे से, षड्यंत्र रचकर उसने गांधीजी की हत्या की थी
। दूसरी बात कि, गांधीजी की हत्या 55 करोड रुपये और मुसलमानों के प्रति उनके पक्षपाती रवैये के कारण नहीं, हताशा और ईर्ष्या के कारण की गयी थी ।
गांधीजी जब तक जीवित हैं तब तक अपना कुछ चलने वाला नहीं है, यह हकीकत उन्हें परेशान करती थी । इसी
कारण कुछ लोग उन्हें गालिया! देते थे, कुछ लोग मौका देखकर तोडफोड करते थे, तो कुछ लोग उनकी हत्या करने का प्रयास करते थे । तीसरी बात कि, ये लोग प्रामाणिक, बहादुर और देशभक्त नहीं
थे । काले-कारनामे करने वालों, झूठ फैलाने वालों, गन्दी शरारतें करने
वालों तथा प्रार्थना करते हुए निःशस्त्र व्यक्ति की हत्या करने वालों को प्रामाणिक, बहादुर,
देशप्रेमी तो हरगिज नहीं कहा जा सकता । झूठगफरेब और षड्यंत्र साम्प्रदायिकता की
राजनीति के अनिवार्य अंग हैं । साजिश करके
ही इन्होंने सन् 1948 में अयोध्या स्थित बाबरी
मस्जिद में रामलीला की तसवीर रखवायी थी, षड्यंत्र करके ही मस्जिद तोडी गयी और अब मन्दिर बनाने की भी साजिश कर रहे हैं । देशप्रेम की चादर ओढे, हमारे आसपास घूमनेवाले, इन
विकृत-कुण्ठित-मानस के षड्यंत्रकारियों को हमें अच्छी तरह पहचान लेना चाहिए ।
पंकज "वेला ",20/08/2017
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