Sunday, 20 August 2017

गांधी जी की विचारधारा के स्रोत


गांधी जी की विचारधारा के स्रोत




गांधी जी के विचारों पर अनेक भारतीय धार्मिक पुस्तकों, धर्मों तथा पश्चिमी दार्शनिकों के विचारों का प्रभाव पड़ा था. इंग्लैंड में अध्ययन करते समय गांधी जी ने सर एडविन अर्नाल्ड द्वारा अनुदित  गीता पढ़ी. इसने उनके दृष्टिकोण को सर्वाधिक प्रभवित किया तथा उन्हें कर्म योगी बनाया. वे गीता को अपना पथ प्रदर्शक तथा आध्यात्मिक निर्देश ग्रंथ मानते थे. गांधी जी ने सत्य व अहिंसा के नैतिक सिद्धांतों तथा आदर्शों के बारे में गीता से बहुत कुछ सीखा था. गीता के अतिरिक्त गांधीजी ने उपनिषद्, पतंजलि के योग सूत्र, रामायण, महाभारत, जैन तथा बौद्ध धर्म की पुस्तकों का भी अध्ययन किया था. इन पुस्तकों के अध्ययन से सत्य, अहिंसा और अपरिग्रह में उनकी आस्था बहुत दृढ़ ही गई. ईसाई धार्मिक ग्रंथों में न्यू टेस्टामेंट तथा समर्रो ऑन द माउंट का गांधी जी के विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ा. अहिंसक प्रतिरोध की शिक्षा उन्हें ईसा मसीह के इन शब्दों से मिली. भगवन उन्हें क्षमा कीजिये. क्योंकि वे नहीं जानते की वे क्या कर रहे हैं.


आधुनिक दार्शनिकों का प्रभाव.....तीन आधुनिक दार्शनिकों जॉन रस्किन, हेनरी डेविड थोरो तथा टॉलस्टॉय ने गांधीजी को अत्यंत प्रभावित किया. जॉन रस्किन की पुस्तक अनटू दिस लास्ट से शारीरिक श्रम का आदर करना सीखा तथा उस आर्थिक व्यवस्था को सर्वोत्तम माना जिससे सबको लाभ होता है. थोरो से गांधी जी ने सविनय अवज्ञा की प्रेरणा ली. टॉलस्टॉय के प्रभाव में गांधी जी ने ईसाई मत के नैतिक अराजकतावाद  के सिद्धांत को अपनाया. उनके ईश्वर का साम्राज्य अपने अंदर हैनामक निबंध को पढ़ने के बाद गांधी जी के मन का संशय तथा नास्तिकता दूर हो गयी और अहिंसा के प्रति उनका विश्वास दृढ़ हो गया. टॉलस्टॉय ने प्रेम को सभी समस्याओं का समाधान माना था. उन्होंने कहा था की ईसा अपने पड़ोसी के साथ झगड़ा नहीं करता. न वह आक्रमण करता है और न ही हिंसा का प्रयोग करता है. दार्शनिकों के अतिरिक्त गुजराती कवि रायचंद भाई के विचारों ने भी गांधी जी के जीवन व विचारधारा को प्रभावित किया.


लोकचेतना जागृत करने वाले साधन...जनचेतना जागृत करने में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका तथा भारत में तो सफल रहे ही साथ ही उनके चमत्कारी आकर्षक व्यक्तित्व से पूरा विश्व प्रभावित हुआ. गांधी जी में ऐसे तमाम गुण थे जिसके कारण जनता उनकी ओर खिचीं चली आती थी. यहाँ गांधी जी के वैचारिक हथियार प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिसके कारण लोक चेतना जागृत हुई -

1.     गांधी जी के सम्पूर्ण जीवन का आधार सत्यपर आधारित था, सत्य के सामने वे किसी बात से समझौता करने को तैयार नहीं होते थे चाहे इसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े. उनका कहना था कि हमारा प्रत्येक कार्य एवं व्यवहार सत्य के लिए होना चाहिए. सत्य के अभाव में हम किसी भी नियम का शुद्धता से पालन नहीं कर सकते.सत्य-


2.     सत्य के शुद्ध अर्थ में गांधी जी सत्य और ईश्वर को एक ही मानते थे. वे ईश्वर की पूजा सत्य के रूप में करते थे. इस अर्थ में सत्य मानव-जीवन का लक्ष्य बन जाता है. गांधी जी के अनुसार सत्य का पालन प्रत्येक क्षेत्र में होना चाहिए चाहे वह अर्थनीति, धर्म, राजनीति, परिवार, समाज या देश हो. गांधी जी बचपन से ही सत्य का पालन करते थे और सत्य बोलते थे। गांधी जी की वास्तव में यह सबसे बड़ी देन थी कि उन्होंने व्यक्तिगत आधार पर सत्य की खोज के लिए किए जाने वाले प्रयासों का सम्बन्ध  सामाजिक हित से जोड़ दिया. आध्यात्मिक पूर्णता के इच्छुक लोगों के लिए गांधी जी ने यह नया मार्ग निकाला. गांधी जी ने कहा कि ईश्वर को यदि प्राप्त करना है तो गरीबों, दुखियों एवं असहायों की सहायता करो, नंगे को वस्त्र दान दो, भूखे को अन्न दान दो, बेघर को आश्रय दो आदि. गांधी जी का मानना था की जो तथ्य सत्य की कसौटी पर खरा न उतरे उसे त्याग देना चाहिए. सत्य के अतिरिक्त कुछ भी स्थायी नहीं है, सत्य में तो सच्चे ज्ञान का भाव केन्द्रित होता है. गोपीनाथ धवन ने गांधी जी के सत्य के बारे में लिखा है सत्य का सिद्धांत केवल भाषण के सत्य तक सीमित नहीं है, इसमें क्रिया का भी सत्य निहित है


अहिंसा( Non Violence)....गांधीजी के आध्यात्मिक आदर्शवाद में सत्य के बाद अहिंसा का विशिष्ट स्थान है. अहिंसा की परम्परा भारत के लिए कोई नई वस्तु नहीं है प्रायः सभी भारतीय धर्म ग्रन्थों में अहिंसा का स्वरूप प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से देखने को मिलता है. गांधी जी ने अहिंसा का प्रयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया, इन्होंने अहिंसा का व्यावहारिक जीवन में प्रयोग कर यह सिद्ध कर दिया कि अहिंसा भी एक महान अस्त्र है. अहिंसा को विश्वव्यापी बनाने का श्रेय गांधी जी को है।

      गांधी जी मानते थे कि मानवीय संबंधों में सभी समस्याओं का एक मात्र हल अहिंसा ही है. अहिंसा, हिंसा से अधिक शक्तिशाली है. अहिंसा का अर्थ है मन, कर्म तथा वचन से किसी भी जीवधारी को आघात या कष्ट न पहुँचाना. गांधी जी का कहना था कि अहिंसा किसी अकर्मण्यता का दर्शन नहीं है. यह तो कर्मठता और गतिशीलता का दर्शन है. गांधी जी के अनुसार जो व्यक्ति मन, कर्म, वचन का पालन करता है उसके लिए कोई शत्रु नहीं होता बल्कि शत्रु भी मित्र बन जाएगा. यंग इंडिया में गांधी जी ने लिखा है अहिंसा बलवान और वीर का गुण है साथ ही यह निर्भयता के बिना असम्भव है. अहिंसा भीरु और कायर लोगों का तरीका नहीं है यह तो उन वीरों का तरीका है जो कि मृत्यु का सामना करने को तैयार है. वह जो हाथ में तलवार लेकर लड़ता है वह नि:संदेह वीर है परन्तु वह जो अपनी छोटी उंगली को उठाये बिना लड़ता तथा बिना डरे मृत्यु का सामना करता है अधिक वीर है.अहिंसा में सर्वोच्च प्रेम की भावना होती है न कि घृणा की. इसी कारण अहिंसा में पराजय की कोई गुन्जाइश नहीं रहती है. घृणा सदैव मरती है किन्तु प्रेम कभी नहीं मरता।


       गांधी जी के अनुसार स्वार्थ द्वेष या फिर क्रोधवश किसी को कष्ट पहुँचाना, किसी का शोषण करना, किसी पर ज़ुल्म करना हिंसा है. यदि कोई व्यक्ति स्वयं हिंसा न करे किन्तु दूसरों को ऐसा करने में मदद करता है, तो उसकी मदद भी हिंसा मानी जाएगी. हिंसा के मूल में सदैव भय होता है, हिंसा चाहे किसी रूप में क्यों न हो सत्य की प्राप्ति में बाधक होता है. हिंसा से व्यक्ति समाज या फिर राष्ट्र का ही ह्रास होता है।

       गांधी जी ने अहिंसा को धर्म से जोड़ते हुए कहा की अहिंसा मेरे धर्म का सिद्धांत भी है”. सामाजिक धर्म के रूप में अहिंसा को विकसित किया जाये, जिससे अधिक से अधिक व्यक्ति या राष्ट्र इसे अपना सके . समाज को अहिंसा के आधार पर संगठित करना हम सब का परम कर्तव्य है. मनुष्य को चाहिए कि वह हिंसा से दूर रहते हुए अहिंसा के सिद्धांत का पालन करें. इससे व्यक्ति निरपेक्ष सत्य या ईश्वर के निकट पहुंचेगा. नीति के रूप में अहिंसा तभी सफल हो सकती है जब लोग इसका साहस के साथ पालन करें. अहिंसा तो सर्वोच्च प्रेम, दया, करुणा और आत्मा का बलिदान है. निःसंदेह सत्य रूपी धर्म की प्राप्ति अहिंसा से ही संभव है।


       अहिंसा का प्रयोग हृदय परिवर्तन करने का साधन है. गांधी जी की अहिंसा पारलौकिक शांति या मोक्षप्राप्ति का ही साधन नहीं है बल्कि सामाजिक शांति, राजनीतिक व्यवस्था, धार्मिक समन्वय और पारिवारिक निर्माण का भी साधन है. आर्थिक क्षेत्र में अहिंसा का तात्पर्य है कि कम से कम प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हो, जैसे रोटी, कपड़ा, मकान आदि। यदि पूंजीपति वर्ग मजदूरों का शोषण करते है तो यह आर्थिक हिंसा होगी, अतः पूंजीपतियों को चाहिए कि मजदूरों के हृदय को चोट न पहुँचाते हुए उचित मजदूरी प्रदान करें जिससे वे भी दो वक्त की रोटी खा सकें. गांधीजी कहते है कि इससे न केवल पूंजीपतियों एवं मजदूरों के बीच प्रेम भाव का विकास होगा बल्कि मजदूर भी अपना काम सत्य निष्ठता पूर्वक करेंगे।


       गांधी जी ने सच्चे लोकतंत्र की स्थापना में भी अहिंसा के मार्ग को अपनाने के लिए कहा. सच्चे लोकतंत्र या स्वराज्य की प्राप्ति असत्य तथा हिंसात्मक साधनों द्वारा कभी नहीं की जा सकती, क्योंकि इन साधनों का प्रयोग करने का अर्थ होगा अपने विरोधियों को कुचलना. अतः जनता की स्वतंत्रता तो केवल अहिंसक राज्य में ही संभव है. इसलिए गांधी जी कहते थे कि मेरे लिए अहिंसा स्वराज से पहले आती है. गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का प्रयोग सभी परिस्थितयों में किया और समस्याओं पर विजय भी प्राप्त की.गांधी जी ने जिस अहिंसा का प्रयोग किया वह निषेधात्मक धारण न होकर विधेयात्मक शक्ति है। अहिंसा बुराई को अच्छाई से जीतने का सिद्धांत है इसमें बदले या दुर्व्यवहार की भावना नहीं होती।        


सत्याग्रह....महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरुद्ध तथा भारत में विदेशी तथा सामंतवादी शासन के विरुद्ध सफलतापूर्वक सत्याग्रह आन्दोलन का संचालन किया. गांधी जी का सत्याग्रह न केवल दक्षिण अफ्रीका और भारत के लिए नवीन प्रयोग था, अपितु संपूर्ण विश्व के लिए यह अपनी तरह का एक अद्भुत प्रयत्न था, गांधी जी से पहले किसी ने भी सत्य और अहिंसा पर आधारित इतना व्यापक एवं व्यावहारिक प्रयोग नहीं किया था.


       ‘सत्याग्रहशब्द सत्यऔर आग्रहशब्दों से बना है जिसका अर्थ है सत्य के लिए दृढ़ता पूर्वक आग्रह करना। दूसरे शब्दों में भय तथा प्रलोभन के बिना स्वयं कष्ट सहन  करते हुए केवल अहिंसात्मक उपायों की सहायता से सदैव सत्य पर दृढ़ रहना तथा मन वचन तथा कर्म से उसी के अनुसार आचरण करना सत्याग्रह है. गांधी जी ने सत्याग्रह को इसी व्यापक रूप में स्वीकार किया और इसी व्यापक अर्थ में वे दक्षिण अफ्रीका तथा भारत में सत्याग्रह का प्रयोग करते रहे।


       गांधी जी के सत्याग्रहशब्द की उत्पत्ति रंगभेदकी नीति के विरुद्ध हुई. गांधी जी का सत्याग्रह दर्शन सत्य के सर्वोच्च आदर्श पर आधारित था. उनका मानना था सत्याग्रहमनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है. वह पवित्र अधिकार ही नहीं अपितु पुनीत कर्तव्य भी है. यदि सरकार जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करती और बेईमानी तथा आतंकवाद का समर्थन करती है तो उसकी अवज्ञा करना आवश्यक हो जाता है किन्तु जो अपने अधिकारों की रक्षा करना चाहते हैं उन्हें हर प्रकार के कष्ट सहने के लिए तैयार रहना चाहिए. सब प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के विरुद्ध शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग ही सत्याग्रह है. गांधी जी का कहना था कि सरकार के कानूनों का प्रतिरोध करते समय सत्याग्रही को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं उसके द्वारा जाने-अनजाने, सामाजिक अथवा राजनीतिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न न हो जाए. गांधी जी जानते थे कि सत्याग्रह ही एक मात्र अस्त्र है जिसके द्वारा बुराई और अन्याय का प्रतिरोध संभव है ।



पंकज "वेला"
20अगस्त,2017,9:30 PM.

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Questions Paper@ IGNOU BPSC-133 : तुलनात्मक सरकार और राजनीति

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