जय हिन्द...बाउजी प्रणाम ...
प्रलेस की विचारधारा के निर्धारण में जब शिवदान चौहान, रामविलास शर्मा, रांगेय राघव जैसे आलोचकों का राजत्व काल था तब तुलसी और कबीर, रामचंद्र शुक्ल और नंददुलारे वाजपेयी, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय के लेखन में प्रगतिशीलता और प्रतिगामिता के जीवाणुओं की मात्रा दलगत राजनीति के आधार पर ढूँढ़ी गई । अनेक युवा कम्युनिस्ट साहित्यकार जो आज तबेले में लतिहाव जैसी कम्युनिस्ट लेखको की आपसी गिरोहबंदी से ईमानदारी से दुखी हैं, उनका विश्वास है कि यह स्थिति कम्युनिस्ट आंदोलन में बिखराव के कारण हैं । वस्तुत: जब कम्युनिस्ट पार्टी एक थी तब भी हिंदी के सवाल पर राहुल जैसे महापंडित के लिए गुटबंदी के चलते पार्टी में स्थान नहीं था और उन्हें दल से निष्कासित कर दिया गया था । किसी भी कम्युनिस्ट लेखक ने इसके विरोध का साहस नहीं प्रदर्शित किया था । उस समय भी रांगेय राघव रामविलास शर्मा पर वैसे ही हमला कर रहे थे जिस तरह पिछले कुछ वर्पों में रामविलास शर्मा न केवल नई कविता और उससे जुड़े लोहियावादियों पर बल्कि नेमिचंद्र जैन और मुक्तिबोध जैसे अपनी ही विचारधारा के लेखकों पर राजनीतिक कारणों से हमला करते हैं ( साक्षात्कार, कल के लिए: रामविलास शर्मा विशेषांक-3, अक्टूबर 02-मार्च 03, पृ.18-19 ) । यह दुखद है कि झूठी विचारधारा के नाम पर लड़ी जाने वाली, कम्युनिस्ट लेखकों की इस अहंजन्य लड़ाई और दिशाहीन मानसिकता से उपजे सन्निपाती घात प्रतिघात की चपेट में अब रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, राजेंद्र यादव, ज्ञानरंजन भी आ चुके हैं ।
प्रलेस की विचारधारा
प्रलेस की विचारधारा के निर्धारण में जब शिवदान चौहान, रामविलास शर्मा, रांगेय राघव जैसे आलोचकों का राजत्व काल था तब तुलसी और कबीर, रामचंद्र शुक्ल और नंददुलारे वाजपेयी, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय के लेखन में प्रगतिशीलता और प्रतिगामिता के जीवाणुओं की मात्रा दलगत राजनीति के आधार पर ढूँढ़ी गई । अनेक युवा कम्युनिस्ट साहित्यकार जो आज तबेले में लतिहाव जैसी कम्युनिस्ट लेखको की आपसी गिरोहबंदी से ईमानदारी से दुखी हैं, उनका विश्वास है कि यह स्थिति कम्युनिस्ट आंदोलन में बिखराव के कारण हैं । वस्तुत: जब कम्युनिस्ट पार्टी एक थी तब भी हिंदी के सवाल पर राहुल जैसे महापंडित के लिए गुटबंदी के चलते पार्टी में स्थान नहीं था और उन्हें दल से निष्कासित कर दिया गया था । किसी भी कम्युनिस्ट लेखक ने इसके विरोध का साहस नहीं प्रदर्शित किया था । उस समय भी रांगेय राघव रामविलास शर्मा पर वैसे ही हमला कर रहे थे जिस तरह पिछले कुछ वर्पों में रामविलास शर्मा न केवल नई कविता और उससे जुड़े लोहियावादियों पर बल्कि नेमिचंद्र जैन और मुक्तिबोध जैसे अपनी ही विचारधारा के लेखकों पर राजनीतिक कारणों से हमला करते हैं ( साक्षात्कार, कल के लिए: रामविलास शर्मा विशेषांक-3, अक्टूबर 02-मार्च 03, पृ.18-19 ) । यह दुखद है कि झूठी विचारधारा के नाम पर लड़ी जाने वाली, कम्युनिस्ट लेखकों की इस अहंजन्य लड़ाई और दिशाहीन मानसिकता से उपजे सन्निपाती घात प्रतिघात की चपेट में अब रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, राजेंद्र यादव, ज्ञानरंजन भी आ चुके हैं ।
वेला
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