जय हिन्द ..बाउजी प्रणाम ...
प्रलेस की विचारधारा,भाग-२
सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों से हिंदी लेखन में
स्वत:स्फूर्त, गतिशील विचारधारा का हमेशा प्रभाव रहा है । इसे जब किसी
बिल्ला और झंडा विशेष के डंडा से हांकने का दबाव बनाया गया तो इसमें कुरुचि ओर
स्तरहीनता का समावेश हुआ । उन्नीसवीं सदी के अंतिम चतुर्थांश और उसके बाद के
समुचित, संपूर्ण
भारतीय राजनीतिक, सांस्कृतिक राष्ट्रीय विचारधारा का चरम विंदु
सन 1910 और
इसके आसपास के वर्ष हैं । यही गांधी के हिंद स्वराज, इकबाल के सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां
हमारा, बंदे
मातरम के क्रांतिकारी लेख और उनके लिए अरबिंद की नजरबंदी, बाल
गंगाधर तिलक का गीता रहस्य, सावरकर की पुस्तक फर्स्ट वार ऑफ इंडिपेंडेंस, सुब्रमण्यम
भारती की तमिल कविताओं, मैथिली शरण गुप्त की भारतभारती और प्रेमचंद
की सरकार से टकराहट और उनकी आरंभिक हिंदीं पुस्तकों का प्रकाशन का समय है ।
उसके बाद के दो दशक में बिखंडनवादी, सांप्रदायिक, जातिवादी, क्षेत्रवादी-
नृजातिक विचारधाराओं का तेजी से प्रचार प्रसार होता है । इस काल में मुस्लिम लीग (1906), हिंदू
महासभा (1910), द्रविण
विचारधारा से उत्प्रेरित जस्टिस पार्टी (1916), नगा क्लब (1918),
अकाली दल (1921),
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (1924) की
स्थापना होती है । महाराष्ट्र में ज्योतिबा फूले ने उन्नीसवीं सदीं के अंतिम समय
में जाति व्यवस्था के विरोध में समाज सुधार का आंदोलन चलाया था । उसे दलित वर्गों
के संगठन (1919) और डॉ अंबेडकर के विचारों से विशेष बल मिला ।
भारतेंदु के समय से ही हिंदी में सामाजिक सुधार विषयक लेखन की प्रचुर परंपरा रहने
के बाद भी इन आंदोलनों का प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता है । विखंडनवादी विचारधाराओं के
प्रभाव से भी सब मिला कर इस अवधि में हिंदी लेखन अलग ही रहा । राष्ट्रीय विचारधारा
के साथ मिल कर हिन्दी में यह छायावाद का काल है ।
सन 1917 में रूस में बोलशेविक क्रांति हुई । भारत में
भी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना (1925) हुई । सन 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई
। सन् 1936 में
लखनउ में सज्जाद जहीर की पहल और प्रेमचंद की अध्यक्षता में प्रगतिशील लेखक संध
(प्रलेस) का पहला सम्मेलन हुआ । स्मरणीय है कि पाकिस्तान बनते ही सबसे पहले सज्जाद
जहीर पाकिस्तान चले गए थे । वहां रहना जब दूभर हो गया तो प्रधान मंत्री नेहरू की
कृपा से वे किसी तरह फिर से भारत लौट पाए थे । आरंभ में पांच छ: वर्पों तक प्रलेस
राष्ट्रवादी, समाजवादी, कम्युनिस्ट और सामाजिक सरोकारों में रुचि
रखने वाले लेखकों का साझा मंच था । भारत छोड़ो आंदोलन में जब इससे जुड़े बहुत से
लेखक जेल चले गए तो कम्युनिस्टों ने इस पर कब्जा कर लिया । उसके बाद स्टालिनवादी
तानाशाही साँचे में ढली कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से विचारधारा के नाम पर अपने जेबी
संगठन प्रलेस और इप्टा के जरिए साहित्य और संस्कृति की भूमिका की डंडामार कवायद
आरंभ हुई ।
वेला.....
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